Sunday, February 7, 2010

बस एक बार वापस लौटने का मन करता है

बस एक बार वापस लौटने का मन करता है
आज हर वो दिन जीने को मन करता है,
कुछ बुरी बातें जो अब अच्छी लगती हैं
कुछ बातें जो कल की ही बातें लगती हैं .
अबकी बार क्लास attend करने का मन करता है
दोपहर की क्लास में आखें बंद करने को मन करता है .
दोस्तों के रूम की वो बातें याद आती है
एक्साम के टाइम पे वो हसी मजाक याद आती है ,
कॉलेज के पास वाली थडी की चाय याद आती है
तब की बेकार लगने वाली फोटोस चेहरे पे हसी लाती है .
अपनी गलतियों पे तुमसे डाट खाना याद आता है .
पर तुम्हारी गलती देखने का अब भी मन् करता है .
एक ऐसी सुबह उठने का मन् करता है
बस एक बार वापस लौटने का मन करता है .
बस एक बार और
वापस लौटने का मन करता है ."

मेरे उनकी जुबान शादी के बाद…

मेरे उनकी जुबान शादी के बाद…

अभी शादी का पहला ही साल था,
ख़ुशी के मारे मेरा बुरा हाल था,
खुशियाँ कुछ यूं उमड़ रहीं थी,
की संभाले नही संभल रही थी..

सुबह सुबह मैडम का चाय ले कर आना
थोडा शरमाते हुये हमें नींद से जगाना,
वो प्यार भरा हाथ हमारे बालों में फिरना,
मुस्कुराते हुये कहना की…

डार्लिंग चाय तो पी लो,
जल्दी से रेडी हो जाओ,
आप को खेत भी है जाना…

घरवाली भगवान का रुप ले कर आयी थी,
दिल और दिमाग पर पूरी तरह छाई थी,
सांस भी लेते थे तो नाम उसी का होता था,
इक पल भी दूर जीना दुश्वार होता था…

५ साल बाद……..

सुबह सुबह मैडम का चाय ले कर आना,
खाट पर रख कर जोर से चिल्लाना,
आज खेत जाओ तो मुन्ना को
स्कूल छोड़ते हुए जाना…

सुनो एक बार फिर वोही आवाज आयी,
क्या बात है अभी तक छोड़ी नही चारपाई,
अगर मुन्ना लेट हो गया तो देख लेना,
मुन्ना की टीचर्स को फिर खुद ही संभाल लेना…

ना जाने घरवाली कैसा रुप ले कर आयी थी,
दिल और दिमाग पर काली घटा छाई थी,
सांस भी लेते हैं तो उन्ही का ख़याल होता है,
अब हर समय जेहन में एक ही सवाल होता है…
काश हम भी कुंवारे होते !

कहानी

एक दंपत्ति की शादी को साठ वर्ष हो चुके थे। उनकी आपसी समझ इतनी अच्छी थी कि इन साठ वर्षों में उनमें कभी झगड़ा तक नहीं हुआ। वे एक दूजे से कभी कुछ भी छिपाते नहीं थे। हां, पत्नी के पास उसके मायके से लाया हुआ एक डब्बा था जो उसने अपने पति के सामने कभी खोला नहीं था। उस डब्बे में क्या है वह नहीं जानता था। कभी उसने जानने की कोशिश भी की तो पत्नी ने यह कह कर टाल दिया कि सही समय आने पर बता दूंगी।

आखिर एक दिन बुढ़िया बहुत बीमार हो गई और उसके बचने की आशा न रही। उसके पति को तभी खयाल आया कि उस डिब्बे का रहस्य जाना जाये। बुढ़िया बताने को राजी हो गई। पति ने जब उस डिब्बे को खोला तो उसमें हाथ से बुने हुये दो रूमाल और 50,000 रूपये निकले। उसने पत्नी से पूछा, यह सब क्या है। पत्नी ने बताया कि जब उसकी शादी हुई थी तो उसकी दादी मां ने उससे कहा था कि ससुराल में कभी किसी से झगड़ना नहीं । यदि कभी किसी पर क्रोध आये तो अपने हाथ से एक रूमाल बुनना और इस डिब्बे में रखना।

बूढ़े की आंखों में यह सोचकर खुशी के मारे आंसू आ गये कि उसकी पत्नी को साठ वर्षों के लम्बे वैवाहिक जीवन के दौरान सिर्फ दो बार ही क्रोध आया था । उसे अपनी पत्नी पर सचमुच गर्व हुआ।

खुद को संभाल कर उसने रूपयों के बारे में पूछा । इतनी बड़ी रकम तो उसने अपनी पत्नी को कभी दी ही नहीं थी, फिर ये कहां से आये?
''रूपये! वे तो मैंने रूमाल बेच बेच कर इकठ्ठे किये हैं ।'' पत्नी ने मासूमियत से जवाब दिया।