बचपन के दुःख भी कितने अच्छे थे ,तब तो सिर्फ़ खिलोने टुटा करते थे ....
वो खुशियाँ भी ना जाने कैसी खुशियाँ थी ,तितली को पकड़ कर उछाला करते थे ...
पाँव मारकर ख़ुद बारिस के पानी में ,अपनी आप को भिगोया करते थे ....
अब तो एक आंसूं भी रुसवा कर जाता है ,बचपन में दिल खोल कर रोया करते थे ।
वो खुशियाँ भी ना जाने कैसी खुशियाँ थी ,तितली को पकड़ कर उछाला करते थे ...
पाँव मारकर ख़ुद बारिस के पानी में ,अपनी आप को भिगोया करते थे ....
अब तो एक आंसूं भी रुसवा कर जाता है ,बचपन में दिल खोल कर रोया करते थे ।
3 comments:
aacha likha h Vinod ji !!!
भाई copy-paste है ! अच्छा लगा इस लिए यहाँ डाल दिया !
रचनाकार का मुझे ज्ञान नहीं है !
मेरे ब्लॉग पर आकर देख लो भाई
मैने भी इसे बचपन के टाइटल से ही पोस्ट किया हें
मेरी पसंद लेबल के अंतर्गत
https://ishwarbrij.blogspot.com
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